हरिद्वार ।
गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में देश-विदेश से आये हजारों साधक आश्विन नवरात्र के अवसर पर गायत्री साधना में जुटे है। इन साधकों की दिनचर्या में ध्यान, साधना, योग, हवन और सत्संग शामिल है, इनमें सभी साधकों को अनिवार्य रूप से भागीदारी करनी होती है। सत्संग की पवित्र शृंखला को देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या नियमित रूप से संबोधित कर रहे हैं और साधकों के जिज्ञासाओं का समाधान भी सुझाते हैं।


देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में सत्संग शृंखला के इस अवसर पर गीता मर्मज्ञ श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि मनुष्य जीवन को चौराहे से गुजरना होता है। जो उसे देवता, पितर, भूत और भगवान की ओर ले जाने की चार दिशाएँ दिखाता है। गायत्री साधना साधक को भगवान की ओर जाने के लिए प्रेरित करती है। मनुष्य जैसा कर्म करेगा, उसी के अनुरूप भगवान उसे फल देता है। गायत्री साधना साधक के अंतश्चेतना में, उसके मन, अंतःकरण, विचारों और भावनाओं में सन्मार्ग की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा भरती है। गायत्री साधना से मानसिक क्षेत्र में सद्गुणों की वृद्धि होती है, दोष-दुर्गुण कम होने लगते हैं और सद्गुण बढ़ने लगते हैं। इस मानसिक कायाकल्प का परिणाम यह होता है कि दैनिक जीवन में आने वाले अनेक दुःखों का सहज ही समाधान होने लगता है।
अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या ने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में मनुष्य प्रायः सांसारिक हो गया है, इसलिए भगवान उसे उसी अनुरूप फल दे रहा है। जो निःस्वार्थ भाव से मनोयोगपूर्वक तप साधना करता है उसे सांसारिक भव बंधन से भगवान मुक्ति प्रदान करता है। श्रद्धेय डॉ पण्ड्या ने कहा कि लोग सांसारिक कर्मों के बीच उलझ कर रह गये हैं, इससे मुक्ति पानी हो, तो तप, साधना और अनुष्ठान करना चाहिए। कठोपनिषद में उल्लेखित श्लोकों का वाचन करते हुए उन्होंने कहा कि पतन से उबरने के लिए तप, प्रार्थना एवं सत्संग का सहारा लेना चाहिए।
इस अवसर पर युगगायक डॉ शिवनारायण प्रसाद एवं श्री ओंकार पाटीदार ने भक्ति की झंकार उर से……. भक्तिगीत प्रस्तुत कर उपस्थित जनसमुदाय के हृदयों को झंकृत कर दिया। इस दौरान कुलपति श्री शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या सहित समस्त विभागाध्यक्ष, विद्यार्थी एवं शांतिकुंज के अंतःवासी कार्यकर्त्ता भाई बहिन उपस्थित रहे।

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