भक्त और भगवान के मिलन का एकमात्र मार्ग भक्ति ः डॉ पण्ड्या

हरिद्वार ।देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में नवरात्र साधना में जुटे साधकों को संबोधित करते हुए कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि भक्त और भगवान के मिलन का एकमात्र मार्ग भक्ति है। भगवान हृदय और अंतःकरण की भाषा सुनते हैं। भगवान को पाने के लिए अंतःकरण में अटूट निष्ठा एवं अनवरत साधना करने का धैर्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि साधना में दुष्कर से दुष्कर प्रारब्ध को काटने या कम करने की शक्ति विद्यमान है। मीराबाई, भक्त प्रहलाद, ताज बेगम आदि ने अपनी श्रद्धा भक्ति एवं दृढ इच्छा शक्ति से भगवान को प्राप्त किया था। भगवान से मिलन हेतु साधना करने का यह सर्वोत्तम समय है।


युवाओं के उत्प्रेरक श्रद्धेय डॉ पण्ड्या ने कहा कि भगवान किसी तरह के प्रलोभन से नहीं, वरन् भक्त की भावना और श्रद्धा से प्रसन्न होते हैं। भक्त चाहे किसी भी धर्म, सम्प्रदाय से जुड़ें हों, उनके लिए सभी एक समान हैं। उन्होंने कहा कि जीवन साधना को इतना प्रखर व प्राणवान बनायें, जिससे भगवान की कृपा आप पर सदैव बनी रहे और आपको इच्छित फल की प्राप्ति हो। उन्होंने कहा कि भगवान का एक अवतार राम, कृष्ण के रूप में सांसारिक जगत में तथा दूसरा अवतार भक्त के अंतःकरण में होता है।
अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ पण्ड्या ने श्रीअरविन्द, स्वामी विवेकानन्द, पं. श्रीराम शर्मा आचार्य आदि की अनवरत साधना के फलों को सरल ढंग से समझाया। इस अवसर पर अपने अनुभवों को साझा करते हुए युवाओं के प्रेरणास्वरूप श्रद्धेय डॉ पण्ड्या ने कहा कि मन में दृढ़ इच्छा शक्ति हो, तो ईश्वर की कृपा सफलता के रूप में प्राप्त होती है। इस अवसर पर विद्यार्थियों के साधनात्मक, व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक जिज्ञासों का तर्क, तथ्य एवं प्रमाण के साथ समाधान किया। साथ ही जीवन साधना तथा विद्यार्थी जीवन में सफलता के विविध सूत्रों की जानकारी दी। इससे पूर्व संगीत विभाग के भाइयों द्वारा प्रस्तुत गीत ‘लागी रे लगन एक तेरे नाम की..’ ने उपस्थित साधकों को भक्ति भाव में झूमने के लिए विवश किया।


वहीं शारदीय नवरात्र की पूर्णाहुति के अवसर पर देवसंस्कृति विवि परिसर में 24 कुण्डीय तथा शांतिकुंज परिसर में 27 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ का आयोजन भी हुआ। इसमें शारदीय नवरात्र अनुष्ठान में जुटे देश-विदेश से आये हजारों साधकों सहित देसंविवि व शांतिकुंज के अंतःवासी भाई-बहिनों ने अपनी साधना की पूर्णाहुति की। इस अवसर पर साधकों, विद्यार्थियों के चेहरे पर उत्साह एवं प्रसन्नता झलक रही थी। इस दौरान दोनों परिसरों में सामूहिक भोज का भी आयोजन हुआ।

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