हरिद्वार। श्री अखंड परशुराम अखाड़े की ओर से जिला कारागार रोशनाबाद में आयोजित श्री शिव महापुराण कथा के नौवें दिन कथा व्यास महामंडलेश्वर स्वामी रामेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना के विषय में बताते हुए कहा कि भगवान शिव के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे। विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था। मृकण्ड ऋषि ने विचार किया कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं। इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर उसने संतान नहीं होने का विधान बदलवाया जाए। मृकण्ड ऋषि ने घोर तप किया। भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे। इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन नहीं दिए। लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं। अंततः महादेव प्रसन्न हुए और उन्होंने ऋषि से कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे रहा हूं। लेकिन इस वरदान में हर्ष के साथ विषाद भी होगा। भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा। ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है। इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है। ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया। मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है। वही भोलेनाथ इसकी रक्षा करेंगे। भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है। मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी। मार्कण्डेय की माता बालक की उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी। उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी। मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे। बारह वर्ष पूरे होने को आए थे। मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे। समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की। मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था। यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और वे लौट गए। उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए। इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा। यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए। बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया। यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तो जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा। एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं। शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए। उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया। यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे। उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं। आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है। भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ और वे बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है। तुम इसे नहीं ले जा सकते। यम ने कहा प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है। मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा। महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए। उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है। इस अवसर पर श्री अखंड परशुराम अखाड़े के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक, भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री, जेल अधीक्षक मनोज आर्य, डा.राकेश गैरोला, पवन त्यागी, संजय गोयल, सोमपाल कश्यप, सचिन तिवारी, अरुण कुमार, जलज कौशिक, सत्यम शर्मा, विराजमोह शर्मा, आचार्य विष्णु शास्त्री, आचार्य संजय शर्मा, राकेश तनेजा आदि ने शिव महापुराण का पूजन किया।